
नई दिल्ली l कृषि कानूनों Farm laws के खिलाफ 14 दिन से आंदोलन कर रहे किसानों से 6 बार बातचीत करने के बाद सरकार central government ने आज कानूनों में बदलाव का 10 पॉइंट का लिखित प्रस्ताव भेजा था। लेकिन, किसानों ने इसे भी ठुकरा दिया। किसान कानून रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। उनका कहना है कि अब पूरे देश में आंदोलन तेज होगा। अंबानी-अडानी के प्रोडक्ट और भाजपा नेताओं का बायकॉट करेंगे।
सरकार ने कहा- वर्क-इन-प्रोग्रेस
कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देने के लिए सरकार के तीन मंत्रियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें किसानों को भेजे गए प्रस्ताव के बारे में पूछा गया तो सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने जवाब दिया।
उन्होंने कहा- जब एक अंतिम दौर की बातचीत हो रही हो, तो यह वर्क-इन-प्रोग्रेस माना जाता है। इसकी रनिंग कमेंट्री नहीं हो सकती। किसानों के मुद्दों पर सरकार संवेदनशील है।सरकार ने किसानों से 6 बार चर्चा की है। उम्मीद है अब आखिरी दौर होगा।
‘सरकार जिद पर अड़ी तो किसान भी पीछे नहीं हटेंगे‘
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान पीछे नहीं हटेंगे। यह सम्मान का मुद्दा है। क्या सरकार कानून वापस नहीं लेना चाहती? क्या किसानों पर अत्याचार होगा? अगर सरकार जिद पर अड़ी है तो, किसान भी अपनी बात पर डटे हैं। कानून वापस होने ही चाहिए।
आइए, जानते हैं कि सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव में क्या है और सरकार ने किसानों के लिए लिखित में क्या कुछ करने को कहा था.
- मंडी समितियों द्वारा स्थापित मंडियां कमजोर होंगी और किसान निजी मंडियों के चंगुल फंस जाएगा की शंका पर सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया है कि अधिनियम में संशोधित करके यह प्रावधानित किया जा सकता है कि राज्य सरकार निजी मंडियों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था लागू कर सके. साथ ही ऐसी मंडियों से राज्य सरकार एपीएमसी मंडियों में लागू सेस/शुल्क की दर तक सेस/शुल्क निर्धारित कर सकेगी.
- कृषि सुधार कानूनों को निरस्त करने की मांग पर सरकार की ओर से कहा गया कि कानून के वे प्रावधान जिन पर किसानों को आपत्ति है, उन पर सरकार खुले मन से विचार करने को तैयार है.
कोर्ट में जाने का विकल्प!
- किसान को विवाद समाधान हेतु सिविल न्यायालय में जाने का विकल्प नहीं होने के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया कि शंका के समाधान हेतु विवाद निराकरण की नए कानूनों में प्रावधनित व्यवस्था के अतिरिक्त सिविल न्यायालय में जाने का विकल्प भी दिया जा सकता है.
- किसानों की भूमि की कुर्की हो सकेगी के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया है कि प्रावधान में स्पष्ट है, फिर भी किसी भी प्रकार के स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो तो उसे जारी किया जाएगा.
- किसान की भूमि पर बड़े उद्योगपति कब्जा कर लेंगे. किसान भूमि से वंचित हो जाएगा के मुद्दे पर कहा गया है कि प्रावधान पूर्व से ही स्पष्ट है फिर भी यह और स्पष्ट कर दिया जाएगा कि किसान की भूमि पर बनाई जाने वाली संरचना पर खरीददार द्वारा किसी प्रकार का ऋण नहीं लिया जा सकेगा और न ही ऐसी संरचना उसके बंधक द्वारा रखी जा सकेगी.
- कृषि अनुबंधों के पंजीकरण की व्यवस्था नहीं है, के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया कि जब तक राज्य सरकारें रजिस्टीकरण की व्यवस्था नहीं बनाती हैं तब तक सभी लिखित करारों की एक प्रतिलिपि करार पर हस्ताक्षर होने के 30 दिन के भीतर संबंधित एसडीएम कार्यालय में उपलब्ध कराने हेतु उपयुक्त व्यवस्था की जाएगी.
बिल भुगतान व्यवस्था में बदलाव नहीं
- बिजली संशोधन विधेयक, 2020 को समाप्त किए जाने पर सरकार की ओर से कहा गया कि किसानों की विद्युत बिल भुगतान की वर्तमान व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होगा.
- पैन कार्ड के आधार पर किसानों से फसल खरीद की व्यवस्था होने पर धोखे की आशंका को लेकर सरकार की ओर से कहा गया कि शंका के समाधान हेतु राज्य सरकारों को इस प्रकार के पंजीकरण के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान की जा सकती है जिससे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार राज्य सरकारें किसानों के हित में नियम बना सकें.
- समर्थन मूल्य पर सरकारी एजेंसी के माध्यम से फसल बेचने का विकल्प समाप्त होने की आशंका और उपज का व्यापार निजी हाथों में जाने की आशंका को लेकर सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार एमएसपी की वर्तमान खरीदी व्यवस्था के संबंध में लिखित आश्वासन देगी.
- सरकार की ओर से कहा गया कि देश के किसानों के सम्मान में और पूरे खुले मन से केंद्र सरकार द्वारा पूरी संवेदना के साथ सभी मुद्दों के समाधान का प्रयास किया गया है. अतः सभी किसान यूनियनों से अनुरोध है कि वे अपना आंदोलन समाप्त करें.
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सरकार से मिला ड्राफ्ट दिखाते किसान।
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