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नई दिल्ली: होम लोन Home Loan अक्सर बैंक या वित्तीय संस्थान और कर्ज लेने वाले शख्स, दोनों पक्षों के लिए एक जोखिम भरा ट्रांजेक्शन साबित होता है. होम लोन के लिए अप्लाई करने वाला आवेदक इस बात को लेकर कनफ्यूज रहता है कि जिस लोन अमाउंट के लिए वह अप्लाई कर रहा है वह लोन उसके घर या संपत्ति खरीदने के लिए के लिए पर्याप्त होगा या नहीं ? वहीं दूसरी ओर होम लोन जारी करने वाला वित्तीय संस्थान भी इस बात से डरा रहता है कि कर्ज लेने वाला शख्स लोन चुका पाएगा या नहीं? कहीं उसका लोन डिफॉल्ट तो नहीं हो जाएगा? इसके लिए लोन लेने वाले का सिबिल स्कोर भी चेक किया जाता है. होम लोन जारी करने से पहले वित्तीय संस्थान की तरफ से लीगल और टेक्निकल वेरीफिकेशन भी कराया जाता है. आइए जानें क्यों जरूरी है ये वेरीफिकेशन प्रासेस. साथ ही इसके महत्वै और फायदों के बारे में भी जानेंगे.

लीगल वेरीफिकेशन प्रोसेस

लीगल वेरीफिकेशन प्रोसेस इस बात की पुष्टि करता है कि होम लोन के लिए उपलब्ध कराए गए सभी जरूरी डाक्यूमेंट्स उपलब्ध हैं और यह भी सुनिश्चित कराता है कि कर्ज लेने वाले शख्स की तरफ से कोई ऐसी कानूनी अड़चन नहीं है जो लोन को खतरे में डाल सकती है. इस प्रक्रिया के दौरान ये सत्यापित किया जाता है कि प्रापर्टी पर किसी दूसरे का ग्रहणाधिकार नहीं है. प्रापर्टी लोन लेने वाले शख्स के अधिकार में है मसलन प्रापर्टी गिरवी या किसी और शख्स के नाम से नहीं है.

 लीगल वेरीफिकेशन प्रोसेस में समय जरूर लगता है यह प्रक्रिया जटिल भी है लेकिन होम लोन जारी करने  से पहले ये प्रक्रिया सबसे अहम है. इस प्रोसेस के दौरान यह स्टेप्स देखने को मिल सकते हैं.

•कर्ज लेने वाला शख्स जब बैंक या लोन जारी करने वाले वित्तीय संस्थान के पास होम लोन के लिए अप्लाई करते समय डाक्यूमेंट्स जमा करता है तब लीगल वेरीफिकेशन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

•प्रापर्टी बेचने के एग्रीमेंट की मूल प्रति, प्रीपर्टी टैक्स के पेमेंट की रसीद और मकान का ब्लूप्रिंट या फ्लोर प्लान जैसे जरूरी दस्तावेज सबमिट करना होता है.

•कर्ज लेने वाला शख्स जब जरूरी दस्तावेज जमा कर देता है तो लीगल वेरीफिकेशन प्रासेस शुरू हा जाती है. टेक्निकल वेरीफिकेशन के दौरान सभी दस्तावेजों की संबंधित मुहर के साथ ओरीजनल प्रति  भी उपलब्ध कराने पड़ते हैं.

•उसके बाद बैंक या लोन जारी करने वाला वित्तीय संस्थान एक लीगल चेक आयोजित कराता है. इस चरण में वकीलों की तरह विशेषज्ञों की एक टीम दस्तावेजों को चेक करती है जिनमें एनओसी, टाइटल डीड आदि शामिल हैं.

•लीगल वेरीफिकेशन प्रोसेस दो चरण में पूरी होती है. इस प्रासेस के पहले चरण में प्रॉपर्टी का मूल्यांकन किया जाता है. उसके बाद दूसरे चरण में टाईटल रिपोर्ट तैयार की जाती है.

 टेक्निकल वेरीफिकेशन

लीगल वेरीफिकेशन प्रोसेस के बाद टेक्निकल वेरीफिकेशन की जाती है. इसमें होम लोन जारी करने से पहले प्रापर्टी की फिजिकल कंडीशन चेक की जाती है. एक्सपर्ट की एक टीम प्रीपर्टी लोकेशन का दौरा और उसकी मूल्यांकन करती है. इसमें कर्ज लेने वाले शख्स द्वारा अप्लाई किए गए लोन अमाउंट और प्रापर्टी वैल्यू का मूल्यांकन की जाती है.

लीगल वेरीफिकेशन क्यों है जरूरी

होम लोन जारी करने से पहले वित्तीय संस्थान की तरफ से लीगल वेरीफिकेशन कराए जाते हैं. ये लीगल वेरीफिकेशन कई मायनों में अहम हैं आइए जानें.

सेफ्टी

वित्तीय संस्थान द्वारा होम लोन जारी करने से पहले लीगल वेरीफिकेशन कराना जरूरी है. क्योंकि इससे यह सुनिश्चत हो जाता है कि प्रापर्टी सुरक्षित है. उस पर किसी और का अधिकार नहीं है. कुल मिलाकर ये पता लग जाता है कि प्रापर्टी कानून विवाद से फ्री और सुरक्षित है. जमीन को लेकर किसी प्रकार की कानूनी अड़चन होने पर वित्तीय संस्थान को परेशानियों से जूझना पड़ सकता है इससे बचने के लिए लीगल वेरीफिकेशन बेहद जरूरी है.

प्रापर्टी की सही वैल्यू

प्रापर्टी की सही वैल्यू का पता लगाने के बाद लोन जारी किया जा सकता है. टेक्नीकल वेरीफिकेशन कर्ज लेने वाले शख्स को उस लोन अमाउंट को हासिल करने में मदद करता है जिसके वे वास्तव में हकदार हैं.

 लोन लेने वाले शख्स के लिए सुविधाजनक

कानूनी और तकनीकी सत्यापन के बाद बैंक प्रोजेक्ट को तैयार करने में बिल्डर्स का सहयोग करते हैं. ऐसी स्थिति लोन लेने वाले शख्स काफी सुविधाजनक हो जाती है, क्योंकि उन्हें कानूनी और तकनीकी सत्यापन प्रक्रिया में भाग नहीं लेना पड़ता है. उन्हें केवल अपनी क्रेडिटवर्दीनेस यानी साख को प्रमाणित करना होगा.

जोखिम का पता करना

अगर कानूनी सत्यापन प्रक्रिया के दौरान किसी प्रकार के जोखिम का संकेत मिलता है, तो लोन जारी करने की सभावना कम हो जाती है. दरअसल उधार देने वाली संस्थान को लोन डिफॉल्ट होने का डर हो जाता है.

प्रापर्टी का सही वैल्यू

लोन अमाउंट लगभग प्रापर्टी वैल्यू के बराबर है. इसलिए, सत्यापन प्रक्रिया के माध्यम से संपत्ति का एक ठोस और संपूर्ण निर्णय दोनों पक्षों को उपलब्ध कराया जाता है. कानूनी पेचीदगियों को दूर करने में काफी मुश्किलें आती हैं और इसमें समय भी ज्यादा लगता है. इसलिए इन सब पहलुओं के बारे में जान लेने से लोन लेते समय जरूरी प्रक्रियाओं में आसानी और मदद मिलती है, साथ ही यह सुनिश्चित होता है कि प्रापर्टी की मार्केट वैल्यू के बराबर कीमत मिल रही है.

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