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हैदराबाद l तेलंगाना में एक प्रमुख ताकत के रूप में उभरने का संकेत देते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) में सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) को स्पष्ट बहुमत पाने से रोक दिया.

150 सीटों वाले नगर निगम चुनाव में TRS को 55 सीटें मिली हैं और BJP ने 48 सीटें हासिल की हैं. वहीं, AIMIM को 43 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटें मिली हैं. इस चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त कामयाबी मिली है क्योंकि पिछले चुनाव में पार्टी को सिर्फ 4 सीटें मिली थीं. TRS को पिछली बार 99 सीटें मिली थीं और AIMIM को 44 सीटें प्राप्त हुई थीं.

बीजेपी प्रमुख विपक्षी दल की हैसियत में पहुंची

ये बड़ी बात है क्योंकि बीजेपी प्रमुख विपक्षी दल की हैसियत में पहुंची है. ये नतीजे इस लिहाज से अहम होंगे कि 2023 में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.

हैदराबाद नगर निगम 4 जिलों में फैला हुआ है और इस पूरे इलाके में 24 विधानसभा सीटें आती हैं यानी विधानसभा का करीब पांचवां हिस्सा हैदराबाद नगर निगम से प्रभावित होता है.

आजकल देश में एक नारा जोर-शोर से चल रहा है- वोकल फॉर लोकल. वैसे तो यहां लोकल का मतलब स्वदेशी चीजों को लेकर है.

लेकिन, आज हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि बीजेपी लोकल चुनावों को लेकर भी काफी वोकल है.

इतना ही नहीं, बीजेपी के बड़े नेता इस जीत के बाद अब अगले मोर्चे की तैयारी में हैं.

बीजेपी ने लोकल चुनावों को भुनाया

जिन चुनावों को आम तौर पर हम लोकल चुनाव बोलकर भूल जाते हैं. बीजेपी ने उन्हीं चुनावों को वोकल बना दिया.

जरा याद कीजिए, आपने कब देखा या सुना था कि किसी लोकल चुनाव में किसी राजनीतिक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष इतना वोकल हो रहा हो.

आपने कब देखा था कि किसी नगर निगम चुनाव को सत्ताधारी पार्टी ने इतनी अहमियत दी हो कि उसने अपने कद्दावर मंत्री को मैदान में उतार दिया हो.

बीजेपी के बड़े-बड़े नेता वोकल बने रहे और कांग्रेस ने मानो लोकल समझकर इस चुनावी ट्रेन को यूं ही छोड़ दिया कि चलो अभी नहीं, कभी और सही.

ये ठीक है कि पुराने किले ढहते हैं और नए किले खड़े होते हैं, लेकिन हैदराबाद में राजनीति की नई उभरती मीनार उन क्षत्रपों को सावधान कर रही है, जिन्हें सियासत विरासत में मिली है.

 जेपी नड्डा 120 दिनों की यात्रा पर निकलेंगे

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा अब पूरे देश की यात्रा पर निकलने वाले हैं. जेपी नड्डा 5 दिसंबर से पूरे 120 दिनों की यात्रा पर निकलने वाले हैं.

वो हर उस राज्य का दौरा करेंगे, जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. मिसाल के तौर पर पश्चिम बंगाल.

यहां पार्टी ने 294 विधानसभा सीटों में से 200 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा है. जेपी नड्डा 8 और 9 दिसंबर को बंगाल दौरे पर जा रहे हैं.

बंगाल में चुनाव से पहले यानी मई तक हर महीने गृहमंत्री अमित शाह कम से कम 2 बार और जेपी नड्डा 2 से 3 बार दौरा करेंगे.

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों की भी तैयारी है, जिसमें 24 दिसंबर का उनका शांति निकेतन का कार्यक्रम भी शामिल है.

इसे देखकर ये कहा जा सकता है कि बीजेपी के लिए कोई चुनाव छोटा या बड़ा नहीं होता है बल्कि चुनाव सिर्फ और सिर्फ चुनाव होता है और पार्टी हर हाल में इसे जीतना चाहती है.

बीजेपी स्थानीय चुनावों के लिए ज्यादा गंभीर

केंद्र की सत्ता में आने के बाद बीजेपी स्थानीय चुनावों को लेकर और ज्यादा गंभीर हो गई. कुछ उदाहरण के जरिए हम ये बात आपको समझाते हैं.

बीजेपी 2014 में केंद्र की सत्ता में आई. ओडिशा में साल 2017 में स्थानीय निकाय के चुनाव हुए.

2012 के चुनाव में बीजेपी को जिला परिषद की 853 सीटों में से सिर्फ 12 में जीत मिली थीं, लेकिन 2017 में ये संख्या बढ़कर 306 हो गई, जबकि बीजेडी की सीटें 651 से घटकर 460 पर पहुंच गईं और कांग्रेस सिर्फ 60 सीटों पर सिमट गई. इसी तरह 2017 में उत्तर प्रदेश के 16 नगर निगमों के चुनाव हुए, जिनमें से 14 पर बीजेपी जीत गई और सिर्फ 2 सीटें BSP के खाते में गईं.

हरियाणा के पांचों नगर निगमों पर फहराया था बीजेपी ने झंडा

बीजेपी ने 2018 के स्थानीय निकाय चुनावों में हरियाणा के पांचों नगर निगमों पर झंडा फहरा दिया.

नतीजा ये हुआ कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में मिली हार से निराश कार्यकर्ताओं में फिर से जोश भर गया और यही जोश काम आया 2019 के लोकसभा चुनावों में, जिसमें पार्टी को जबरदस्त कामयाबी मिली.

बीजेपी दोबारा केंद्र की सत्ता में लौट आई. संगठन का विस्तार एक ऐसा मंत्र है जो किसी भी पार्टी को सफल बनाता है, लेकिन छोटे आयोजनों को बड़ा बनाना कामयाबी की गारंटी मानी जाने लगी है.

यही बात बीजेपी को बाकी दलों से अलग बनाती है. इसका फायदा ये भी होता है कि शीर्ष नेताओं को छोटी-छोटी जगहों पर भी पार्टी की स्थिति की सही जानकारी मिल जाती है.

दूसरी तरफ कार्यकर्ताओं को भी बड़े नेताओं के सामने अपनी बात रखने का मौका मिलता है.

शीर्ष नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच बिचौलिया संस्कृति भी खत्म हो जाती है और सबसे बड़ी बात ये है कि स्थानीय जनता का पार्टी पर भरोसा बढ़ता है.

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